बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-2 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 मनोविज्ञान - सरब प्रश्नोत्तर
प्रश्न- 'टी' परीक्षण क्या है? इसका प्रयोग हम क्यों करते हैं?
उत्तर -
प्राचलीय परीक्षा : टी-टेस्ट
प्राचलीय परीक्षाओं के अन्तर्गत टी-टेस्ट तथा एफ-टेस्ट आते हैं। इस अध्याय में केवल टी-टेस्ट का वर्णन किया गया है।
यदि स्वतन्त्र चर पर केवल समूहों की रचना की गई है, अर्थात् स्वतन्त्र चर का प्रहस्तन केवल दो श्रेणियों में किया गया है तथा केवल इन दो समूहों की ही तुलना आश्रित चर पर की जानी है तो उस स्थिति में टी-टेस्ट का प्रयोग किया जाता है। टी-टेस्ट प्राचलीय परीक्षा है तथा इसमें एक ही स्वतन्त्र चर होता है जिसका दो या दो से अधिक श्रेणियों में प्रहस्तन किया जाता है। इस प्रकार के अनुसंधान आकल्पों को "एकल चर आकल्प" कहते हैं।
इस दृष्टिकोण से टी-टेस्ट दो प्रकार के होते हैं -
(i) स्वतन्त्र समूहाधारी, तथा
(ii) सह-सम्बन्धी अथवा पुनर्मापाधारी।
स्वतन्त्र समूह की स्थिति में दोनों समूहों की इकाइयाँ भिन्न होती हैं। सह-सम्बन्धी समूहों की स्थिति में इकाइयों के एक ही समूह को दो उपचारों के अधीन रखा जाता है। यदि इकाइयों को समानीकृत करके दोनों समूहों में वितरित किया जाता है तो समूहों की इकाइयाँ भिन्न होते हुए भी उन्हें सह-सम्बन्धी ही समझा जाता है। टी-टेस्ट का प्रयोग दोनों ही स्थितियों में किया जा सकता है। परन्तु दोनों के सूत्र अलग-अलग हैं।
एक-दूसरे दृष्टिकोण से उपरोक्त दोनों प्रकार की टी-परीक्षाओं के दो रूप होते हैं
(i) लघु- न्यादर्शीय, तथा
(ii) वृहद् - न्यादर्शीय।
इन दोनों स्थितियों में भी अलग-अलग सूत्रों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार टी-परीक्षण के कुल चार प्रकार होते हैं -
(i) वृहद् - न्यादर्श स्वतन्त्र समूह,
(ii) वृहद् - न्यादर्श सह-सम्बन्धी समूह,
(iii) लघु- न्यादर्श स्वतन्त्र समूह,
(iv) लघु- न्यादर्श सह-सम्बन्धी समूह।
टी-टेस्ट : विशिष्ट टिप्पणी
टी-टेस्ट के उपयोग से सम्बन्धित कुछ अभिधारणाओं को दर्शाया जा चुका है। इनमें कुछ प्रकार हैं-
(i) जनसंख्या में चरों के वितरण का सम (normal) होना
(ii) न्यादर्शों की जनसंख्याओं (Populations) के विचरण (variances) का समरूप होना।
इनकी सांख्यिकीय विधियों द्वारा जाँच भी की जा सकती है। इनका उल्लेख सांख्यिकी की विशेष पुस्तकों, जैसे- हेज (1973) की पुस्तक आदि में किया गया है। फिर भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि टी-टेस्ट एक शक्तिशाली सांख्यिकीय परीक्षा है तथा उसके परिणाम उपरोक्त अभिधारणाओं के भंग होने पर भी अधिक कुप्रभाव नहीं पड़ता, किन्तु भिन्न आकार (N) वाले स्वतन्त्र समूहों की स्थिति इसका अपवाद (exception) है। इस स्थिति में विचरण की सजातीयता (homogeneity of variance) की शर्त पूरी नहीं होती तो परिणाम अवांछनीय रूप से प्रभावित हो सकते हैं। अत: इस स्थिति में उपरोक्त अभिधारणा की जाँच अवश्य की जानी चाहिये। यदि यह शर्त पूरी नहीं होती तो टी-परीक्षा के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती। वृहद् न्यादर्श की स्थिति में इन शर्तों के पूरा न होने पर विशेष फर्क नहीं पड़ता, परन्तु लघु न्यादर्श की स्थिति में विचरण की समानता की कमी करने परिणामों पर असर पड़ता है। परन्तु इस स्थिति में भी यदि न्यादर्शों के परिमाण (Ns) समान हों तो समस्या कुछ कम हो जाती है। लघु न्यादर्शों की स्थिति में टी परीक्षा का प्रयोग करने से पहले विचरण - सजातीयता की जाँच आवश्यक है।
एक-पुच्छीय एवं द्वि-पुच्छीय परीक्षण
इस संकल्पना की व्याख्या प्रयोगात्मक आकल्प के अन्तर्गत की जा चुकी है। यहाँ केवल यह बताना है कि एक छोरीय परीक्षा की स्थिति में तालिका का टी मान कैसे देखते हैं। एक-पुच्छीय अथवा एक छोरीय अथवा सदिश परीक्षा के लिये तालिका में 0.05 स्तर पर 0.01 स्तम्भ तथा 0.01 स्तर पर 0.02 स्तम्भ में टी का मान देखा जाता है। यदि द्वि-छोरिय परीक्षा के आधार पर कोई प्राप्त टी-मान किसी सार्थकता - स्तर पर सार्थक ( significant) नहीं आता है तो एक छोरीय परीक्षा का प्रयोग करने पर वह कभी-कभी सार्थक घटित हो जाता है। परन्तु यह निर्णय कि कौन-सी परीक्षा (एक-पुच्छ अथवा द्वि-पुच्छ) का प्रयोग किया जायेगा, अनुसन्धान की सामग्री एकत्र करने से पूर्व नियोजन स्तर पर ही लिया जाना चाहिये।
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- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक मापन के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिये।
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- प्रश्न- निम्नलिखित व्यवस्थित प्राप्तांकों के बहुलांक की गणना कीजिए।
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- प्रश्न- निम्नलिखित आँकड़ों का मध्यमान ज्ञात कीजिए :
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- प्रश्न- परीक्षण रचना के सामान्य सिद्धान्तों, विशेषताओं तथा चरणों का वर्णन कीजिये।
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- उत्तरमाला